जीवनसंवाद : अपमान के आगे

जीवन में प्रेम, स्‍नेह और आदर की चाहत सहज, स्‍वाभाविक है. कौन नहीं चाहता यह सब मिले. यही तो हमारे जीवन की धुरी है. शक्ति है. संकट में हम इसके सहारे ही टिके होते हैं. जब कभी मुश्किल वक्‍त आता है तो हमारा सहारा कौन होता है. कौन है जो हमें बहती नदी में किनारे ले आता है. कौन है जो उफनते समंदर में हमें अकेला नहीं छोड़ता. ऐसा करने वाला कोई व्‍यक्ति नहीं बल्कि भावना होती है. इसे ही हम स्‍नेह और प्रेम के नाम से जानते हैं.

डूबते को तिनके का सहारा! यह तिनका कोई और नहीं बस प्रेम है. इस प्रेम से वह सब कुछ संभव है, जो बाहरी दुनिया को असंभव दिखता है. अब तक समाज जो भी हासिल कर पाया है, उसमें किसी भी दूसरी शक्ति से अधिक प्रेम का योगदान है और कहीं ज्यादा गहरा है.

आइए इसे सरल उदाहरण से समझते हैं. आप एक नई कंपनी बनाना चाहते हैं. अपने मन का कुछ नया काम करना चाहते हैं. ऐसा करने में आपको जिन लोगों की मदद की सबसे अधिक जरूरत पड़ने वाली है, उनका सही मूल्‍य आप कभी नहीं दे सकते. क्‍योंकि अगर वह नियम शर्तों के साथ आपका साथ निभाएंगे तो इतने से बात नहीं बनने वाली. असल में दुनिया में अब तक जो भी बड़ा काम हुआ है, वह धुनी लोगों के सहारे हुआ है.जिंदगी में प्रेम के साथ हम उतना आगे नहीं जाते, जितना पीछे हम अपमान का पीछा करते हुए चले जाते हैं. अपमान के बाद खुद को संभालना ही जीवन की सबसे बड़ी कला है!

गांधी जी की कहानी याद है ना! दक्ष‍िण अफ्रीका में वह जिस रेल के डिब्‍बे में बैठे यात्रा कर रहे थे, उसके लिए उनके पास सभी जरूरी चीज़ें थीं. उसके बाद भी उनको उससे बाहर फेंक दिया गया. क्‍योंकि उनका रंग श्‍वेत नहीं था. यह बापू का अपमान था. लेकिन इसका उनने निजी विरोध नहीं किया. अपने विरोध को हिंसा से परे ले जाकर समाज के अन्‍याय में बदल दिया. उन्‍होंने अपमान का जितना सृजनात्मक बदला लिया. वह अपने आप में अनूठा है. इतिहास में ऐसी मिसाल कम हैं.

गांधी जी का जीवन हमें सिखाता है कि अपमान से आगे कैसे देखा जाए. जीवन को अटकने नहीं देना है. थमने नहीं देना है. उसे आगे ले जाना है.आपको नहीं चुनना, आपका अपमान करना नहीं है. आए दिन हम सुनते हैं कि प्रेम को अस्‍वीकार करने पर दूसरे पक्ष पर हमला किया गया. रिश्‍तों में असहमति होते ही हम इसे अपमान समझ कर एक-दूसरे के पीछे पड़ जाते हैं. बदला लेने, अपने को न चुने जाने पर मन को कुंठा की ओर धकेलने से जीवन में सुख नहीं लौटेगा.

आपको यह बात अच्छी तरह समझनी होगी कि अगर किसी ने आपको छोड़कर दूसरे रिश्‍ते में जाने का फैसला किया है तो यह आपका अपमान नहीं. उसका निर्णय है. अंतर केवल इतना है कि आज किसी ने आपके बारे में फैसला किया है, जबकि कभी आपने दूसरे के बारे में ऐसा ही निर्णय लिया होगा.

जो अपने जीवन में अपमान को संभालना सीख जाते हैं, उनको कोई दुखी नही कर सकता. और जिनको कोई दूसरा दुखी न कर सके, जीवन के असली सुख उन तक ही पहुंचते हैं.


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