जीवनसंवाद: साथ-साथ चलना!

सबके साथ चलना, एक-दूसरे का साथ देना. एक-दूसरे के काम आना, परस्पर निर्भरता. यह मनुष्य का सहज गुण है. एक-दूसरे पर निर्भर होकर हम कमजोर नहीं बनते. बल्कि कहीं बेहतर मनुष्य होने की संभावना हमारे भीतर होती है. दूसरों की देखा-देखी, आत्मनिर्भर बनने की अधूरी अवैज्ञानिक चाहत ने हमें मनुष्य के रूप में एक-दूसरे से काट दिया है. एक-दूसरे के काम आने/करने का आत्मनिर्भरता से कोई वास्ता नहीं. सब सारे काम नहीं कर सकते, सबके भीतर सब तरह का गुण नहीं हो सकता. लेकिन हां सबको मिलाकर बहुत सारे गुण इकट्ठे किए जा सकते हैं.

हमारे आदिम, ग्रामीण जीवन की खूबियों में से परस्पर निर्भरता महत्वपूर्ण रही है. इधर शहरी जीवन की ओर हमारे झुकाव और तकनीक के जीवन में अंधाधुंध तरीके से आने के कारण साथ-साथ चलने का भाव कम हो रहा है. आज आप इस बात पर हंस सकते हैं, लेकिन हम जिस तरह बढ़ रहे हैं, एक ऐसी दुनिया में पहुंचने से बहुत दूर नहीं है जहां मनुष्य की उपस्थिति अप्रासंगिक होती जाएगी. अकेलापन गहरा होता जाएगा.

डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध 'जीवन संवाद' में हम 2017 से अकेलेपन और उदासी के खतरे पर संवाद कर रहे हैं. जब यह आरंभ हुआ था उस समय अनेक मित्रों, विशेषज्ञों का कहना था कि इसके लिए यह सही समय नहीं है. लेकिन पिछले तीन वर्षों में ही समाज में बढ़ती उदासी, नकारात्मकता कह रहे हैं कि हमें ऐसे संवाद की सबसे अधिक जरूरत है जहां कहने वाले से अधिक सुनने वाले की चाहत है. हर कोई बोले जा रहा है, अपना दुख उड़ेले जा रहा है, लेकिन सुनेगा कौन! समझेगा कौन. हम प्रार्थना, आराधना साथ करते हैं.इसी तरह अगर हम साथ बैठकर मन के दरवाजे खोल, दुख साझा करने का काम करने लगें तो मन के बाग में कुम्हलाते पौधों में नई कोंपले आते देर नहीं लगेगी.गिब्सन का ख्याल, अवधारणा हमारे 'जीवन संवाद' के बहुत निकट हैं. मशीन हमें आत्मनिर्भर होने की ओर आमंत्रित करती है. सामूहिक कामों को वह अकेले कर देती है. जिस काम में चार मनुष्य का सहयोग होता वह उसे अकेले करने की क्षमता बढ़ाती है. लेकिन ऐसा करते हुए वह बहुत तेजी से अकेलापन रचती है. हमें उदास और व्यक्ति केंद्रित (केवल स्वयं से सरोकार रखने वाला) बनाती है. हम यहां मशीन से दूर जाने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसके साथ अपने ‌ रिश्ते को समय रहते संतुलित रखने की बात कर रहे हैं.इसलिए एक-दूसरे के साथ को कमजोरी नहीं समझना है. एक-दूसरे की मदद लेने की आदत/ कोशिश सहज मानवीय गुण है. हमें अकेलेपन से बचाने के साथ ही हमें लोगों से जोड़े रखने में भी उपयोगी है. यह उस वक्त बहुत काम में आता है जब हम संघर्ष की धूप में होते हैं. मुश्किल वक्त में होते हैं. उस समय हमारा स्वभाव हमें लोगों के पास जाने से रोकता नहीं है. मदद मांगने से कोई छोटा नहीं होता. साथ निभाने से कोई बड़ा नहीं होता. यह अपने-अपने स्वभाव की बात है. हमारा स्वभाव जितना सहज रहेगा हम मुश्किलों का सामना उतनी ही आसानी से कर पाएंगे.


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